सच ही कहा है किसी ने कि जब कोई व्यक्ति जिंदगी में कुछ करने की ठान ले तो हालातों की उसके सामने को बिसात और औकात नहीं रह जाती। बिहार के सुपर 30 कोचिंग चलाने वाले आनंद की ही तरह कुछ ऐसा कारनाम दिखाया दीपक ने। यह कहानी है बिहार के सुपौल जिले के एक छोटे से गांव में रहने वाले दीपक की जो खुद आनंद कुमार ने बताई। दीपक एक ब्रहाम्ण परिवार से थे। उनके पिता उद्यानंद पाठक के पास जीवन गुजारने के लिए न तो नौकरी थी और न ही खेती के लिए जमीन। इलाज के अभाव में जब पिता ने अपनी एक आंख की रोशनी तक खो दी थी, तब दीपक अपने परीवार के लिए जुगनू बन कर उभर आए।
दीपक का संघर्ष
आज जंहा लोग सारी सहुलियतों के साथ भी जीवन को कोसते दिखाई देते हैं वंही दूसरी तरफ दीपक की जिंदगी में जब खाने के लिए रोटी भी नसीब नहीं होती थी तब भी उन्होने अपने पढ़ाई के जुनुन को बरकरार ऱखा। परीवार की खस्ता हालत होने की वजह से न केवल दीपक को घर के काम करने पड़ते थे, बल्कि आय का एक मात्र साधन कुछ बकरियां ती जिन्हे चराने की जिम्मेदारी भी दीपक के सिर पर ही थी। हाथों में किताब लेकर ही वह बकरियों को चराते थे और पढ़ाई करते थे।
इसी तरह जैसे तैसे पांचवी तक की पढ़ाई खत्म हुई, तो अपने शिक्षकों से नवोदय स्कूल की बारे में सुना। दाखिले के लिए ली जाने वाली परीक्षा में वह पास नहीं हो सके और आगे की पढ़ाई के लिए गावं से दूर एक स्कूल में दाखिला लेना पड़ा जंहा जाने में ही एक घंटे का समय लग जाता था। घर में एक साईकिल भी नहीं थी जिससे वह स्कूल जा पाते लिहाजा यह सफर भी उन्हे पैदल ही पूरा करना पड़ता था। घर में दो वक्त की रोटी के लिए भी आय जुटा पाना असंभव सा हो गया था। दीपक बताते हैं कि घर में चावल केवल तीज-त्योहार के दिन ही बनता था और रात को भूखे पेट सोने की तो आदत सी हो गई थी।
इंडियन ऑइल में इंजीनियर है दीपक
आनंद बतात हैं कि वह दसवी में पास हुआ और 12 वीं में 64 प्रतिशत नंबर ले आया। इसके बाद उसकी उम्मीद को पंख मिले सुपर 30 के आनंद कुमार जी के जरिए। फिर आनंद बताते हैं कि दीपक गांव से हिंदी में पढ़कर निकला था। ए,बी,सी,डी से अंग्रेजी सीखी। आज्ञाकारी, विनम्र और धुन के धनी दीपक की अटूट मेहनत सिर चकराने वाली थी। हर दिन 14-16 घंटे पढ़ाई।
अपनी ब्रांच में हर समय टॉपर। 2008 में आईआईटी की चयन सूची में उसका नाम अच्छी रैंक के साथ चमका। खड़गपुर में दाखिला मिला, जहां वह नामी स्कूलों, महंगी कोचिंग और शानदार आर्थिक पृष्ठभूमि से आए जोश से भरे विद्यार्थियों के बीच था। उसने अपनी जगह बनाई। अच्छा प्रदर्शन किया। आखिरी साल चेयरमैन के हाथों एक मेडल मिला। वह कहता है, ‘गुरुजी, उस क्षण रोना आ गया। सुखद संयोग मुझे पटना ले आए थे वर्ना कहीं बकरियां ही चरा रहा होता।’ दीपक आज इंडियन ऑइल में इंजीनियर है।
कहानी का मकसद
आप जीवन में कितनी ही खराब स्थितियों से क्यों न जूझ रहे हों इस बात से आपको फर्क नहीं पड़ना चाहिए। आपको केवल अपने लक्ष्य पर टिके रहने की आवश्यकता है और वक्त खुद ब खुद बदलना शुरू हो जाएगा। आप भी पढ़ते रहें और अपने लक्ष्य के लिए हर संभव प्रयास करें, तभी आप जीवन में कुछ अच्चा हासिल कर पाएंगे।