Monday, May 20, 2024
hi Hindi
spiritual-guru-baba-buddha-sikh

अध्यात्म पुरुष बाबा बुड्ढा

by SamacharHub
383 views

सिख इतिहास में बाबा बुड्ढा का विशेष महत्त्व है। वे पंथ के पहले गुरु नानकदेव जी से लेकर छठे गुरु हरगोविन्द जी तक के उत्थान के साक्षी बने। बाबा बुड्ढा का जन्म अमृतसर के पास गांव कथू नंगल में अक्तूबर, 1506 ई. में हुआ था। बाद में उनका परिवार गांव रमदास में आकर बस गया।

जब उनकी अवस्था 12-13 वर्ष की थी, तब गुरु नानकदेव जी धर्म प्रचार करते हुए उनके गांव में आये। उनके तेजस्वी मुखमंडल से बालक बाबा बुड्ढा बहुत प्रभावित हुए। वे प्रायः घर से कुछ खाद्य सामग्री लेकर जाते और उन्हें भोजन कराते। एक बार उन्होंने पूछा कि जैसे भोजन करने से शरीर तृप्त होता है, ऐसे ही मन की तृप्ति का उपाय क्या है ? मृत्यु से मुक्ति और शरीर का आवागमन बार-बार न हो, इसकी विधि क्या है ?

गुरु नानकदेव ने आश्चर्य से उसकी ओर देखा और कहा कि तुम्हारी उम्र तो अभी खाने-खेलने की है; पर तुम बातें बुड्ढों जैसी कर रहे हो। इसके बाद गुरु जी ने उनकी शंका का समाधान करने के लिए कुछ उपदेश दिया। तब से उस बालक ने नानकदेव जी को अपना गुरु स्वीकार कर लिया। उन्होंने गुरुओं की सेवा एवं आदेश पालन को ही अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया। इसके बाद से ही उनका नाम ‘बाबा बुड्ढा’ पड़ गया।

spiritual-guru-baba-buddha-sikh

Spiritual Guru Baba Budha

बाबा बुड्ढा के समर्पण और निष्ठा को देखते हुए गुरु नानकदेव जी ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में जब गुरु अंगददेव का चयन किया, तो उन्हें तिलक लगाकर गुरु घोषित करने की जिम्मेदारी बाबा बुड्ढा ने ही निभाई। यह परम्परा छठे गुरु हरगोविन्द जी तक जारी रही। इतना ही नहीं, जब एक सितम्बर, 1604 को गुरु अर्जुनदेव जी ने श्री हरिमन्दिर साहिब, अमृतसर में श्री गुरु ग्रन्थ साहिब की स्थापना की, तो उसके पहले ग्रन्थी का गौरव भी बाबा बुड्ढा जी को ही प्रदान किया गया। इतना महत्वपूर्ण स्थान पाने के बाद भी वे सेवा, विनम्रता और विनयशीलता की प्रतिमूर्ति बने रहे। उन्होंने घास काटने, मिट्टी ढोने या पानी भरने जैसे किसी काम को कभी छोटा नहीं समझा।

जब गुरु हरगोविन्द जी को मुगल शासक जहांगीर ने गिरफ्तार कर ग्वालियर के किले में कैद कर दिया, तो सिख संगत का मनोबल बनाये रखने के लिए बाबा बुड्ढा ने एक नयी परम्परा प्रारम्भ की। उनके नेतृत्व में सिख लोग समूह में गुरुवाणी का गायन करते हुए हरिमन्दिर की परिक्रमा करते तथा फिर अरदास कर वापस घर जाते थे। यह परिक्रमा रात को की जाती थी। जब गुरु हरगोविन्द जी कैद से छूट कर आये, तो उन्हें यह बहुत अच्छा लगा, तब से यह परम्परा हरिमन्दिर साहिब में चल रही है।

जब गुरु अर्जुनदेव जी को बहुत समय तक सन्तान की प्राप्ति नहीं हुई, तो उन्होंने अपनी पत्नी माता गंगादेवी को बाबा बुड्ढा से आशीर्वाद लेकर आने को कहा। वे तरह-तरह के स्वादिष्ट पकवान बनाकर अपने सेवकों के साथ सवारी में बैठकर बाबा जी के पास गयी। बाबा बुड्ढा ने कहा कि मैं तो गुरुओं का दास हूं। आशीर्वाद देने की क्षमता तो स्वयं गुरु जी में ही है। माता जी निराश होकर खाली हाथ वापस लौट गयीं।

जब गुरु अर्जुनदेव जी को यह पता लगा, तो उन्होंने पत्नी को समझाया। अगली बार गुरुपत्नी मिस्सी रोटी, प्याज और लस्सी लेकर नंगे पांव गयीं, तो बाबा बुड्ढा ने हर्षित होकर भरपूर आशीष दिये, जिसके प्रताप से हरगोविन्द जैसा तेजस्वी बालक उनके घर में जन्मा। तब से बाबा बुड्ढा के जन्मदिवस पर उनके जन्मग्राम कथू नंगल में बने गुरुद्वारे में मिस्सी रोटी, प्याज और लस्सी का लंगर ही वितरित किया जाता है।

#हरदिनपावन

( 1 सितम्बर/इतिहास-स्मृति )

 

उड़ीसा में हिन्दू जागरण के अग्रदूत : स्वामी लक्ष्मणानंद

SAMACHARHUB RECOMMENDS

Leave a Comment