Monday, May 20, 2024
hi Hindi
Dadabhai Naoroji

स्मरणीय दादा भाई नौरोजी

by SamacharHub
1.1k views

दादा भाई नौरोजी का जन्म चार सितम्बर, 1825 को मुम्बई के एक पारसी परिवार में हुआ था। उनके पिता श्री नौरोजी पालनजी दोर्दी तथा माता श्रीमती मानिकबाई थीं। जब वे छोटे ही थे, तो उनके पिता का देहान्त हो गया; पर उनकी माता ने बड़े धैर्य से उनकी देखभाल की। यद्यपि वे शिक्षित नहीं थीं; पर उनके दिये गये संस्कारों ने दादा भाई के जीवन पर अमिट छाप छोड़ी।

पिता के देहान्त के बाद घर की आर्थिक स्थिति बिगड़ने से इन्हें पढ़ने में कठिनाई आ गयी। ऐसे में उनके अध्यापक श्री मेहता ने सहारा दिया। वे सम्पन्न छात्रों की पुस्तकें लाकर इन्हें देते थे। निर्धन छात्रों की इस कठिनाई को समझने के कारण आगे चलकर दादाभाई निःशुल्क शिक्षा के बड़े समर्थक बने।

11 वर्ष की अवस्था में इनका विवाह हो गया। इनकी योग्यता देखकर मुम्बई उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश सर एर्सकिनपेरी ने इन्हें इंग्लैण्ड जाकर बैरिस्टर बनने को प्रेरित किया; पर कुछ समय पूर्व ही बैरिस्टर बनने के लिए इंग्लैण्ड गये दो पारसी युवकों की मजबूरी का लाभ उठाकर उन्हें ईसाई बना लिया गया था। इस कारण इनके परिवारजनों ने इन्हें वहाँ नहीं भेजा।

आगे चलकर जब ये व्यापार के लिए इंग्लैण्ड गये, तो इन्होंने वहाँ भारतीय छात्रों के भोजन और आवास का उचित प्रबन्ध किया, जिससे किसी को मजबूरी में ईसाई न बनना पड़े। गान्धी जी की इंग्लैण्ड में शिक्षा पूर्ण कराने में दादाभाई का बहुत योगदान था। दादा भाई व्यापार में ईमानदारी के पक्षधर थे। इससे उनके अपनी फर्म के साथ मतभेद उत्पन्न हो गये। अतः वे अपनी निजी फर्म बनाकर व्यापार करने लगे।

अमरीकी गृहयुद्ध के दौरान इन्हें व्यापार में बहुत लाभ हुआ; पर गृहयुद्ध समाप्त होते ही एकदम से बहुत घाटा भी हो गया। बैंकों का भारी कर्ज होने पर दादाभाई ने अपने खाते सार्वजनिक निरीक्षण के लिए खोल दिये। यह पारदर्शिता देखकर बैंकों तथा उनके कर्जदाताओं ने कर्ज माफ कर दिया। कुछ ही समय में उनकी प्रतिष्ठा भारत की तरह इंग्लैण्ड में भी सर्वत्र फैल गयी।

दादाभाई का मत था कि अंग्रेजी शासन को समझाकर ही हम अधिकाधिक लाभ उठा सकते हैं। अतः वे समाचार पत्रों में लेख तथा तर्कपूर्ण ज्ञापनों से शासकों का ध्यान भारतीय समस्याओं की ओर दिलाते रहते थे। जब एक अंग्रेज अधिकारी ए.ओ.ह्यूम ने 27 दिसम्बर, 1885 को मुम्बई में कांग्रेस की स्थापना की, तो दादाभाई ने उसमें बहुत सहयोग दिया। अगले साल कोलकाता में हुए दूसरे अधिवेशन में वे कांग्रेस के अध्यक्ष बनाये गये।

दादाभाई नौरोजी की इंग्लैण्ड में लोकप्रियता को देखकर उन्हें कुछ लोगों ने इंग्लैण्ड की संसद के लिए चुनाव लड़ने को प्रेरित किया। शुभचिन्तकों की बात मानकर वे पहली बार चुनाव हारे; पर दूसरे प्रयास में विजयी हुए। इस प्रकार वे भारत तथा इंग्लैण्ड के बीच सेतु बन गये। उन्होंने ब्रिटिश संसद में भारत से सम्बन्धित अनेक विषय उठाये तथा शासन की गलत नीतियों को बदलवाया। ब्रिटिश शासन के अन्य उपनिवेशों में रहने वाले भारतीयों के अधिकारों के लिए भी उन्होंने संघर्ष किया। उन्हें रेल की उच्च श्रेणी में यात्रा तथा अंग्रेजों की तरह अच्छे मकानों में रहने की सुविधा दिलायी।

91 वर्ष के सक्रिय जीवन के बाद 20 अगस्त, 1917 को दादाभाई नौरोजी ने आँखें मूँद लीं। पारसी परम्पराओं के अनुसार उनके पार्थिव शरीर को ‘शान्ति मीनार’ पर विसर्जित कर दिया गया।
………………………….
4 सितम्बर/जन्म-दिवस
ईसाई षड्यन्त्रों के अध्येता कृष्णराव सप्रे

जन्म-दिवस

 

स्वतन्त्रता आंदोलन में उग्रवाद के प्रणेता लोकमान्य तिलक

SAMACHARHUB RECOMMENDS

Leave a Comment